भागवत पुराण हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है, जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों की लीलाओं का वर्णन करता है। इसमें कई ऐसी कथाएं हैं जो मनुष्य को धर्म, अधर्म, भक्ति और जीवन के उद्देश्य के बारे में शिक्षा देती हैं। इन्हीं कथाओं में से एक है प्रह्लाद की कहानी, जो भक्ति और सत्य की शक्ति का प्रतीक है। यह कथा न केवल भक्ति के महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे अहंकार और अधर्म का अंत होता है।
प्रह्लाद का जन्म और पृष्ठभूमि
प्रह्लाद दैत्यराज हिरण्यकशिपु और रानी कयाधु के पुत्र थे। हिरण्यकशिपु एक शक्तिशाली दैत्य था, जिसने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके अमर होने का वरदान प्राप्त किया था। उसने यह वरदान पाया कि न तो कोई मनुष्य, न ही कोई जानवर, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न किसी अस्त्र से, न किसी शस्त्र से उसकी मृत्यु हो सकती है। इस वरदान के बाद हिरण्यकशिपु अहंकारी हो गया और स्वयं को भगवान से भी बड़ा समझने लगा। उसने देवताओं को पराजित करके तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया और सभी को अपनी पूजा करने का आदेश दिया।
हिरण्यकशिपु के घर में प्रह्लाद का जन्म हुआ। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु के प्रति अगाध भक्ति रखते थे। यह देखकर हिरण्यकशिपु को बहुत क्रोध आया, क्योंकि वह चाहता था कि उसका पुत्र उसकी तरह अहंकारी और शक्तिशाली बने, न कि भगवान विष्णु का भक्त।
प्रह्लाद की भक्ति और हिरण्यकशिपु का क्रोध
प्रह्लाद की भक्ति इतनी गहरी थी कि वह हर समय भगवान विष्णु का नाम जपते रहते थे। उन्होंने अपने साथियों को भी भगवान विष्णु की महिमा बताना शुरू कर दिया। जब हिरण्यकशिपु को इस बात का पता चला, तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रह्लाद को समझाने की कोशिश की कि वह भगवान विष्णु की पूजा छोड़ दे और उसकी पूजा करे। लेकिन प्रह्लाद ने अपने पिता की बात नहीं मानी और कहा कि भगवान विष्णु ही सर्वशक्तिमान हैं और उनकी भक्ति ही मोक्ष का मार्ग है।
हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को डराने और समझाने के लिए कई तरह के उपाय किए। उसने प्रह्लाद को जहर दिया, पर जहर का कोई असर नहीं हुआ। उसने प्रह्लाद को ऊंची पहाड़ी से फेंक दिया, पर भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को हाथियों के नीचे कुचलवाने की कोशिश की, पर हाथियों ने प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। हर बार प्रह्लाद बच जाते थे, और उनकी भक्ति और दृढ़ होती जाती थी।
होलिका का प्रयास और उसका अंत
हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती। हिरण्यकशिपु ने होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए। होलिका ने ऐसा ही किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे, जबकि होलिका जलकर भस्म हो गई। यह घटना होलिका दहन के रूप में मनाई जाती है, जो होली के त्योहार का प्रतीक है।
नरसिंह अवतार और हिरण्यकशिपु का वध
हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के लिए अंतिम प्रयास किया। उसने प्रह्लाद से पूछा कि तुम्हारा भगवान कहां है? प्रह्लाद ने उत्तर दिया कि भगवान हर जगह हैं, यहां तक कि इस खंभे में भी। हिरण्यकशिपु ने खंभे को तोड़ने के लिए प्रहार किया, और तभी भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए। नरसिंह अवतार आधे शेर और आधे मनुष्य का था। उन्होंने हिरण्यकशिपु को अपनी गोद में लेकर, दरवाजे की चौखट पर बैठकर, अपने नाखूनों से उसका वध कर दिया। यह घटना हिरण्यकशिपु के वरदान के अनुसार हुई: न तो दिन था, न रात; न धरती पर, न आकाश में; न किसी अस्त्र से, न किसी शस्त्र से; और न ही किसी मनुष्य या जानवर द्वारा।
प्रह्लाद की भक्ति का संदेश
प्रह्लाद की कथा भक्ति और सत्य की शक्ति का प्रतीक है। यह कथा हमें सिखाती है कि अगर हमारी भक्ति और विश्वास दृढ़ है, तो कोई भी बाधा हमें नहीं रोक सकती। प्रह्लाद ने अपने पिता के अत्याचारों के बावजूद भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी, और अंत में भगवान ने उनकी रक्षा की। यह कथा यह भी दर्शाती है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है।
निष्कर्ष
प्रह्लाद की कथा भागवत पुराण की सबसे प्रसिद्ध कथाओं में से एक है। यह कथा न केवल भक्ति के महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है। प्रह्लाद की भक्ति और हिरण्यकशिपु के अहंकार का अंत हमें यह संदेश देता है कि हमें अपने जीवन में भक्ति, सत्य और धर्म का मार्ग अपनाना चाहिए।